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जलवायु परिवर्तन की चुनौती को देखते हुए एनडीआरआई ने तैयार किया अधिक तापमान में भी बेहतर दूध देने वाली भैंस का भ्रूण 

हरियाणा।  तापमान अब 45 से 50 डिग्री सेल्सियस को भी पार करने लगा है, जो इंसानों के साथ साथ पशुओं के लिए भी अनुकूल नहीं है। ऐसे में दूध की उपलब्ध बनाए रखने के लिए अब ऐसे पशुओं की जरूरत है जो अधिक ताप सहनकर भी दुग्ध की उपलब्ध बनाए रखने में सहायक बन सके। इसी दिशा में करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग तकनीकी से क्लोनिंग के माध्यम से एक ऐसे महिषवंषीय (भैंस) का भ्रूण बनाने में सफलता हासिल की है, जो पूर्ण पशु बनकर अधिक तापमान में भी बेहतर दूध देगी।

एनडीआरआई के निदेशक डॉ. धीर सिंह बताया कि जलवायु परिवर्तन की बड़ी चुनौती को तो वैज्ञानिकों ने काफी पहले से ही भांप लिया था। इस पर अलग अलग संस्थानों में बड़े पैमाने पर कार्य भी किया जा रहा है। बढ़ते तापमान का खतरा भारतीय पशुओं पर महसूस किया जा रहा है। एनडीआरआई पिछले सौ वर्षों से पशुओं व दुग्ध की उपलब्धता बनाए रखने के लिए कार्य कर रहा है। इस दौरान उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं की कई नस्लें सुरक्षित की गई तो कई नई पैदा की गई।

गंगा और गरिमा जैसे कई क्लोन भी तैयार किए गए। अब अधिक तापमान को सहन करने वाले पशु को तैयार करने पर शोध शुरू किया गया है। जलवायु परिवर्तन के बीच पशुओं में गर्मी का तनाव (हीट स्ट्रैस) एक बड़ी चुनौती है। निदेशक ने बताया कि संस्थान ने भविष्य में दुधारू पशुओं में ताप सहनशीलता बढ़ाने पर कार्य शुरू किया है। जिसमें जीन एडिटिंग (जनन कोशिकाओं में बदलाव) तकनीकि का सहारा लिया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि ऐसे पशु जो दूध अधिक देते हैं, जो अधिक ताप सहन सकते हैं, या उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है, इन अलग अलग विशेषताओं व गुणों वाले पशुओं में ये पता लगाया जा रहा है कि उनके इस गुण के लिए कौन कौन से जीन जिम्मेदार हैं। या ऐसे जीन में क्या ऐसा है जो पशुओं को अधिक गर्मी को सहन करने की शक्ति देता है, उनकी पहचान की जा रही है। कई जीन की पहचान कर भी ली गई है।

उनके आधार पर क्लोन पशु के जीन में बदलाव करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि ये पशु जब तैयार हो, तो उसमें अधिक ताप सहन करने व अधिक दूध देने की क्षमता हो। डॉ. सिंह ने बताया कि शुरुआती दौर में अभी प्रयोगशाला में भैंस का भ्रूण तैयार किया गया है। जिसके टेस्ट लगातार चल रहे हैं। यदि सब कुछ ठीकठाक रहा तो क्लोनिंग तकनीकी से जो पशु तैयार होगा, वह अधिक ताप सहनशील और अधिक दूध देने वाला होगा। इसके बाद प्राकृतिक व कृत्रिम विधियों से ऐसे पशुओं की संख्या बढ़ाई जाएगी। जिससे ताप सहनशील पशु देश को मिल जाएंगे। शुरुआती दौर में भैंस पर कार्य किया जा रहा है लेकिन संस्थान गाय व भैंस दोनों पर ही कार्य करेगा।

निदेशक डॉ. सिंह ने बताया कि फसलों के लिए जीन एडिटिंग की गाइड लाइन तो भारत सरकार की ओर से जारी की गई है लेकिन अभी पशुओं के लिए कोई गाइड लाइन जारी नहीं है।शीघ्र ही पशुओं की जीन एडिटिंग के लिए गाइड लाइन जारी करने के लिए भारत सरकार को लिखा जाएगा। गाइड लाइन जारी होने पर उसी के आधार पर आगे कार्य किया जाएगा।

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