हरियाणा। हरियाणा में 2019 में क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा ने इस बार के चुनाव में पिछले दस साल में सबसे खराब प्रदर्शन किया है। पांच सीटें गंवाने के साथ भाजपा का वोट शेयर 58 फीसदी से गिरकर 46.1 फीसदी तक पहुंच गया है।
भाजपा ने इस चुनाव को जीतने के लिए जो दांव चला था, वह उलटा पड़ गया। भाजपा की हार में जितनी उसकी रणनीति जिम्मेदार है, उतनी ही भागीदारी हरियाणा सरकार की भी रही है। हर लिया गया फैसला सही है, इस अति आत्मविश्वास ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया।
जाटों की नाराजगी को पार्टी ने गंभीरता से नहीं लिया। उनसे जुड़ने के बजाय पार्टी उनसे दूर होती चली गई। जनता के बीच रहने वाले कार्यकर्ताओं की कहीं नहीं सुनी गई। न तो उनकी अधिकारियों ने सुनी और न ही टिकट बंटवारे के दौरान भाजपा ने। जमीन पर उतरे जरूर, मगर मन मारकर के। जब लगा कि बात काफी आगे बढ़ गई है तो सीएम को चुनाव के दौरान अधिकारियों पर लगाम लगाने की बात कहनी पड़ी।
किसान व किसान नेता से संवाद करने के बजाय उलझी योजनाओं से साधने के समीकरण भी काम नहीं आए। भाजपा ने अब मंथन शुरू कर दिया है। संभव है कि हार का ठीकरा कुछ विधायकों, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं पर फूटे। भाजपा व सरकार ने अपनी रणनीति व रवैये में बदलाव नहीं किया तो चार महीने बाद विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
भाजपा के खराब प्रदर्शन के कारण
1. जाट ने खींचे हाथ : हरियाणा की आबादी में जाटों की हिस्सेदारी करीब 27 फीसदी है। कम से कम 40 विधानसभा क्षेत्र में इस बिरादरी की अहमियत है। भाजपा की रणनीति थी कि वह गैर जाट वोटों की गोलबंदी से वह सभी सीटों पर जीत हासिल कर लेगी, मगर उसकी रणनीति फेल हो गई। जाट मतदाताओं ने भाजपा से दूरी तो बनाई। साथ ही दलित वोट भी पार्टी से खिसक गया। इससे पार्टी को अंबाला, सोनीपत, रोहतक, हिसार और सिरसा सीट से हाथ धोना पड़ा।
2. किसानों की नाराजगी : किसान आंदोलन की वजह से भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। 2019 से लेकर इस चुनाव तक दो किसान आंदोलन हुए। इसे लेकर किसानों के एक वर्ग में जबरदस्त गुस्सा देखा गया। वहीं, मुआवजे व अन्य योजनाओं में ऑनलाइन की प्रक्रिया से किसान काफी परेशान हुए। योजनाओं के लाभ को लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया को सरल करने के बजाय सरकार अपनी योजनाओं को बेस्ट बताने में जुटी रही।
3. सरकार का अड़यिल रवैया : पिछले दो सालों के दौरान राज्य के सरपंच, डॉक्टर और कर्मचारी भी सरकार की नीतियों से परेशान दिखे। सरपंचों की शक्तियां छीन ली गई। एमबीबीएस दाखिला के लिए बॉंड पालिसी और कर्मचारियों की विभिन्न मांगों को लेकर सरकार झुकी नहीं। यहां तक सरकार ने बातचीत करने में भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। इससे सरकार के खिलाफ लोगों में गलत संदेश गया।
4. टिकटों का बंटवारा : उम्मीदवारों के चयन के स्तर पर पार्टी की सबसे बड़ी चूक हुई। चुनाव के दौरान कुछ ऐसे लोगों को टिकटें दी गई, जिसे स्थानीय कार्यकर्ता स्वीकार नहीं कर सके। हिसार, सिरसा और रोहतक के उम्मीदवारों को लेकर अंदरखाते ज्यादा विरोध था। मगर हरियाणा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया। उलटा उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को विश्वास जता दिया कि वह चुनाव जीत रहे। सिरसा और रोहतक में सबसे बड़े मार्जिन से पार्टी की हार हुई है।
5.प्रदेश अध्यक्ष की कमी : तीन साल से हरियाणा में काम कर रहे ओम प्रकाश धनखड़ को हटाकर पार्टी ने नायब सिंह सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। धनखड़ ने गांव-गांव जाकर बूथ मैनेजमेंट पर काफी फोकस होकर काम किया था। नए कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज तैयार की थी। मगर शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें हटाकर दिल्ली की जिम्मेदारी सौंप दी। वहीं, सैनी जब तक कुछ समझ पाते, पार्टी ने उन्हें सीएम बना दिया। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी सीएम नायब सिंह सैनी के पास थी। जबकि वह खुद चुनाव लड़ रहे थे। यदि चुनाव के बाद धनखड़ को हटाते तो शायद इतना नुकसान नहीं होता।
6.फैमिली व प्रॉपर्टी आईडी : चुनाव में सरकार के लिए सबसे बड़ी परेशानी उसकी महत्वाकांक्षी योजना फैमिली व प्रॉपर्टी आईडी बनी। लोग इससे काफी परेशान थे। फैमिली आईडी की वजह से कई लोगों के राशन कार्ड कट गए। पेंशन बंद हो गई। आयुष्यमान कार्ड कट गए। सरकार ने इन योजनाओं को बिना किसी तैयारी के ही लागू कर दी थी। इसका खामियाजा भी भाजपा को चुनाव में उठाना पड़ा।
7.अग्निवीर योजना : अग्निवीर योजना से पूरे देश में गुस्सा देखा गया। इससे हरियाणा भी अछूता नहीं रहा। हरियाणा के ग्रामीण इलाकों से काफी संख्या में युवक फौज में शामिल होते हैं। इस योजना से ग्रामीण युवाओं में काफी नाराजगी देखी गई। विपक्ष ने भी इन इलाकों में मजबूती से मुद्दा बनाए रखा।