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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में शिल्प व लोक कला की धूम, भरपूर उत्साह दिखा रहे पर्यटक

अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में शिल्प व लोक कला की धूम, भरपूर उत्साह दिखा रहे पर्यटक

शिल्पकारों से लेकर लोक कलाकार व पर्यटकों में भरपूर उत्साह

गीता महोत्सव का मुख्य आकर्षण बना सपेरों का बीन बाजा

हरियाणा।  अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में देश भर से आए शिल्पकार और कलाकारों ने पवित्र ब्रह्मसरोवर तटों की फिजा बदल दी है। दिन भर शिल्प व लोक कला की धूम चारों ओर मची है तो पर्यटक भी भरपूर उत्साह दिखा रहे हैं। हालांकि पांचवें दिन शनिवार व रविवार की तर्ज पर उम्मीद अनुसार भीड़ नहीं जुटी लेकिन हजारों पर्यटक पहुंचे। उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल और राजस्थान के लोक कलाकारों द्वारा दी गई प्रस्तुतियों पर पर्यटक थिरकते रहे तो ब्रह्मसरोवर के घाट भी लोकनृत्यों व वाद्य यंत्रों की धुनों से गूंजते रहे।

सुबह से देर शाम तक ब्रह्मसरोवर के घाटों पर अलग-अलग राज्यों की संस्कृतिक रंग पर्यटकों को देखने को मिले तो जमकर खरीददारी भी की।शिल्पकारों से लेकर लोक कलाकार व पर्यटकों में भरपूर उत्साह बना रहा। विभिन्न राज्यों की कला के संगम के बीच कलाकार अपने-अपने राज्य की कला का बखूबी बखान कर रहा है। कलाकारों का कहना है कि आज के आधुनिक जमाने में भी उन्होंने अपनी कला को जिंदा रखा है, अपनी कला को विदेशों तक पहुंचा रहे हैं।

विदेशों की धरती पर भी उनकी कला ने उनका नाम रोशन किया है। महोत्सव में कलाकारों द्वारा उत्तराखंड के छपेली, पंजाब के गटका, हिमाचल प्रदेश के गद्दी नाटी, राजस्थान के बहरुपिए, पंजाब के बाजीगर, राजस्थान के लहंगा,मंगनीयार व दिल्ली के भवई नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी जा रही है। यह कलाकार गीता महोत्सव पर 15 दिसंबर तक लोगों को अपने-अपने प्रदेशों की लोक कला के साथ जोड़ने का प्रयास करेंगे।

इस महोत्सव पर आने के लिए देश का प्रत्येक कलाकार आतुर रहता है। पर्यटकों को फिर से ब्रह्मसरोवर के तट पर लोक संस्कृति को देखने का अवसर मिल रहा है। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक कला केंद्र (एनजेडसीसी) की तरफ से विभिन्न राज्यों के कलाकार महोत्सव में पहुंच चुके हैं। यह कलाकार लगातार अपनी लोक संस्कृति की छटा बिखेरने का काम करेंगे।

सरस और शिल्प मेले में हाथों की कला को देखकर पर्यटक हैरान
गीता महोत्सव में लगे सरस और शिल्प मेले में विभिन्न राज्यों से पहुंचे शिल्पकारों की हाथों की अनोखी कारीगरी से ब्रह्मसरोवर का पावन तट सजा हुआ है। मेले में इन शिल्पकारों की हाथ की कला को देखकर महोत्सव में आने वाला प्रत्येक पर्यटक हैरान है। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के मेले में असम से आए शिल्पकार ने बताया कि वे अपने साथ बांस से बनी सुंदर-सुंदर घर की सज्जा सजावट का सामान अपने साथ लेकर आए हैं।

शिल्पकार अपने साथ बांस से बने घर की सज्जा सजावट का सामान फ्रूट बास्केट, फ्लावर पोर्ट, दीवार सिनरी, कप प्लेट, वॉल हैंगिंग, टेबल लैम्प, बांस से बनी पानी की बोतल इत्यादि सामान लेकर आए हैं। यह सब सामान वे असम में बांस से बनाते हैं तथा इस सामान को बनाने के लिए कई लोग काम करते हैं। वे अपनी इस हस्त शिल्पकला से दूसरे लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करते हैं। इनकी कीमत 50 रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक है तथा वे अपनी इस कारीगिरी को दूसरे कई राज्यों में भी दिखाते हैं और पर्यटक इनकी जमकर खरीदारी कर रहे हैं।

गीता महोत्सव का मुख्य आकर्षण बना सपेरों का बीन बाजा
महोत्सव में सपेरों का बीन-बाजा भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इनकी धुनों पर पर्यटक थिरकते रहे तो वहीं पार्टी के संयोजक ने बताया कि बीन बजाकर सपेरों के खेल दिखाना सपेरों का मुख्य पेशा था। लेकिन वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 व 2023 के बाद सांपों का पकड़ना अवैध कर दिया गया, जिनके चलते ये अपने पारंपरिक कला के पेशे से वंचित हो गए व आर्थिक दशा भी ठीक नहीं है। इसलिए अपनी जीविका के लिए शादी-विवाहों व अन्य उत्सवों पर बीन बजाकर अपना पेशा चला रहे हैं।

महोत्सव में राजस्थान की लोक कला कालबेलियों का बीन-बाजा की धुनें भी पर्यटकों को आकर्षित कर रही है। कालबेलियों की लोक कला एवं कालबेलिया नृत्य को 2010 में केन्या के नौरोवी में यूनेस्को द्वारा अमृत सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया। इसी कालबेलिया समाज की गुलाबो सपेरा को उनके कालबेलिया नृत्य के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। बीन बाजा पार्टी के सपेरों की पारंपरिक पोशाक, बीन चिमटा, ढोलक, तुम्बी आदि वाद्य यंत्रों की धुन ने दर्शकों का मन मोह लिया।

धर्मशाला के कांगड़ा नृत्यों ने महोत्सव में मचाई धूम
संगीतांजलि कला केंद्र धर्मशाला के कलाकार अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव कुरुक्षेत्र में झमाकड़ा, कांगड़ी गिद्दा एवं नाटी की बेहतरीन प्रस्तुति देकर खूब वाहवाही लूट रहे हैं। महोत्सव में झमाकड़ा व कांगड़ी लोक नृत्यों की प्रस्तुतियों को खूब सराहना मिल रही है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो चंद्र रेखा डढवाल व कांगड़ा के अन्य लोगों ने डॉ जनमेजय गुलेरिया को कांगड़ा की लोक संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने पर बधाई दी। यही नहीं झमाकड़ा, कांगड़ी गिद्दा व नाटी तीनों नृत्य कुरुक्षेत्र में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।

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