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महायुति के रूप में चुनाव लड़ने को हुए मजबूर

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ओमप्रकाश मेहता
देश अभी भी राष्ट्रवादी की आंधी से काफी दूर है और क्षेत्रवाद अभी भी भारतीय राजनीति में सिर चढकर बोल रहा है, यह संदेश फिर एक बार हाल ही में सम्पन्न दो राज्य विधानसभाओं के चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है, साथ ही इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों ने आज के प्रमुख राजनीतिक दलों की स्थिति को भी स्पष्ट कर दिया है। कौन सा दल कितने गहरे पानी में है, उसकी अहमियत क्या रह गई है, उसे जन समर्थन कितना प्राप्त है, इन सब सवालों का जवाब देश के प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा ‘महायुति’ बनाकर चुनाव लडऩे से स्पष्ट हो रहा है, कभी देश में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़ा करती थी और सरकारें बनाती थी, वे आज ‘महायुति’ के रूप में चुनाव लडऩे को मजबूर है, यही आज की राजनीति की मजबूरी है।

हाल ही में महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव परिणामों ने जहां मोदी की कथित ‘एक-छत्रता’ की स्थिति को स्पष्ट कर दिया है वहीं देश का वास्तविक राजनीतिक चरित्र भी लाकर सामने खड़ा दिया है। आज जबकि देश की आजादी को करीब पचहत्तर साल का अरसा हो चुका है, तब यह महसूस किया जा रहा है कि अब देश का आम वोटर भी जागरूक होने लगा है और वह अब किसी लोभ-लालच या बहकावें से दूर रह कर अपने मताधिकार का उपयोग करने लगा है, नरेन्द्र मोदी एक दशक से भी अधिक समय से प्रधानमंत्री है, किंतु झारखण्ड जैसा राज्य आज भी उनके प्रभाव से मुक्त है, अपने क्षेत्रिय हित को ध्यान में रखकर अपना राजनीतिक भविष्य तय कर रहा है, यही सही अर्थों में राजनीतिक जागरूकता का परिचायक है।

इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि दोनों राज्यों के मतदाताओं को अपनी अस्मिता से कितना लगा है, महाराष्ट्र ने जहां अपनी संस्कृति व राजनीतिक जागरूकता का परिचय देते हुए स्थानीय को महत्व देकर अपना मत प्रकट किया, वहीं झारखण्ड ने भी अपनी स्थानीयता को महत्व देते हुए, अपना मत प्रकट किया, यही आज के मतदाताओं की जागरूकता का स्पष्ट प्रमाण है, वे राष्ट्रीय और स्थानीय हितों का अंतर समझने लगे है, साथ ही इन परिणामों से यह भी स्पष्ट हो गया कि राजनीतिक दल अहम् नहीं, क्षेत्रवाद का हित सर्वोपरी है।

अब धीरे-धीरे राष्ट्रीय हो या स्थानीय सभी राजनीतिक दलों को अपनी स्थिति का भी सही अहसास हो गया है। यही मतदाताओं की जागरूकता का परिचायक है। ज्.यदि यही सिलसिला चलता रहा तो वह दिन दूर नही जब भारतीय राजनीति फिर से विश्व की ‘सिरमौर’ बनकर विश्व पर राज करेगी और विश्व के सभी देश उसके अनन्य समर्थक होंगें।

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