हरियाणा। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रोहतक पर एक छात्रा का परीक्षा परिणाम अवैध रूप से 4 साल तक रोके रखने पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता युवा लड़की है, विवादित आदेश के समय वह 27 वर्ष की थी और अगले चार वर्षों तक वह कुछ भी नहीं कर सकी। आदेश बिना अधिकार के जारी किया गया जिसने उसके करियर और पढ़ाई को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
याचिका दाखिल करते हुए हाईकोर्ट को छात्रा ने बताया था कि वह 2018-2020 बैच के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की छात्रा थी। उसने संस्थान के एक छात्र और अधिकारी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दी थी। हालांकि, आंतरिक शिकायत समिति ने पाया कि शिकायत झूठी थी। बाद में संस्थान ने अकादमिक पुस्तिका के नियमों का हवाला देते हुए एक आदेश पारित किया और याचिकाकर्ता को पीजीपी पाठ्यक्रम की छठे सेमेस्टर को दोहराने और माफी मांगने का निर्देश था।
सजा के बाद याचिकाकर्ता का परीक्षा परिणाम प्रतिवादी-संस्थान द्वारा घोषित नहीं किया गया और चार साल से अधिक समय बीत गया। इससे दौरान न तो वह पढ़ाई आगे बढ़ा पाई और न ही कहीं नौकरी के लिए आवेदन कर सकी। उसका करियर प्रतिवादी-संस्थान द्वारा इस आदेश के पारित होने से बर्बाद हो गया है, जो न केवल अवैध और त्रुटिपूर्ण है, बल्कि कानून के अधिकार के बिना भी है।
हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि आदेश कानून के अधिकार के बिना पारित किया गया था। इस निर्णय से छात्रा का करियर खतरे में पड़ गया है। हाईकोर्ट ने जल्द उसका परीक्षा परिणाम व डिग्री जारी करने का आदेश दिया।