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राहुल की बातें मजाक की नहीं, चिंता का विषय

राहुल की बातें मजाक की नहीं, चिंता का विषय

एस. सुनील
पहली बात आरक्षण के संदर्भ में हैं। उन्होंने कहा, हम आरक्षण खत्म करने के बारे में तभी सोचेंगे, जब भारत एक भेदभावरहित जगह बन जाएगा’। दूसरी बात, सिखों को लेकर है। राहुल ने कहा, भारत में सिख डरने लगे हैं कि उनको पगड़ी और कड़ा पहनने दिया जाएगा या नहीं’। इन दो बातों के अलावा विवाद का तीसरा मुद्दा उनकी मुलाकात है। वे अमेरिकी कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल से मिले, जिसमें इल्हान उमर भी शामिल थीं, जिनका भारत विरोध जगजाहिर है।

कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को लेकर पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीमति स्मृति ईरानी ने एक बहुत पते की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि, राहुल गांधी जो कहते हैं, हम भले उसे बचकाना मानें या हंसी उड़ाएं लेकिन वे अलग तरह की राजनीति कर रहे होते हैं’। उनके कहने का मतलब था कि राहुल की बातें सुनने में बचकानी या बेसिरपैर की लग सकती हैं लेकिन वे किसी न किसी राजनीतिक मकसद से अपनी बातें कहते हैं। वह उनके, उनकी पार्टी के और व्यापक गठबंधन की वृहत्तर राजनीति को साधने के लिए कही गई बात होती है। इसलिए उनकी बातों को और जिस संदर्भ में वे अपनी बात कहते हैं उसको गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। उनकी बातें मजाक की नहीं, बल्कि चिंता का विषय हैं।

तीन दिन की अपनी अमेरिका यात्रा में वे जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी गए और नेशनल प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने जो बातें कहीं या इनसे अलग जिन लोगों से बेहद आत्मीय मुलाकात की है उसको पूरे संदर्भ के साथ देखेंगे तो एक बड़े खतरे का आभास होगा। इससे कांग्रेस और पूरे विपक्ष की मानसिकता समझ में आएगी और उनकी विभाजनकारी राजनीति की वास्तविक तस्वीर भी दिखेगी।

अमेरिका यात्रा में राहुल की दो बातें और एक मुलाकात विवाद के केंद्र में हैं। पहली बात आरक्षण के संदर्भ में हैं। उन्होंने कहा, हम आरक्षण खत्म करने के बारे में तभी सोचेंगे, जब भारत एक भेदभावरहित जगह बन जाएगा’। दूसरी बात, सिखों को लेकर है। राहुल ने कहा, भारत में सिख डरने लगे हैं कि उनको पगड़ी और कड़ा पहनने दिया जाएगा या नहीं’। इन दो बातों के अलावा विवाद का तीसरा मुद्दा उनकी मुलाकात है। वे अमेरिकी कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल से मिले, जिसमें इल्हान उमर भी शामिल थीं, जिनका भारत विरोध जगजाहिर है।

राहुल और विपक्ष के राजनीतिक डिजाइन को समझने के लिए शुरुआत उनकी पहली बात से करते हैं। आरक्षण समाप्त करने से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भारत में अभी बहुत भेदभाव और असमानता है, जब सबके लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे यानी असमानता खत्म हो जाएगी तभी आरक्षण खत्म होगा। इस बात के दो पहलू हैं। एक पहलू को लेकर सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने राहुल पर हमला किया।

उन्होंने कहा कि यह आरक्षण खत्म करने की साजिश का खुलासा है। बाद में दूसरी पार्टियों ने भी यह चिंता जताई और कहा कि कांग्रेस की आरक्षण विरोधी मानसिकता जाहिर हो गई। कहने की जरुरत नहीं है कि आजादी के बाद से कांग्रेस हमेशा आरक्षण विरोधी रही है। उसके शासन में काका कालेलकर आयोग बना था, जिसकी सिफारिशें उसने नहीं लागू कीं और बीपी मंडल की अध्यक्षता में बनी मंडल आयोग की रिपोर्ट भी इंदिरा और राजीव गांधी ने 10 साल तक बक्से में बंद रहने दी थी। अब राहुल गांधी अचानक जाति जनगणना और आरक्षण के चैम्पियन बनने लगे हैं। लेकिन अमेरिका में उनकी बातों से उनकी पार्टी का छिपा हुआ एजेंडा जाहिर हो गया।

आरक्षण पर दिए उनके बयान का दूसरा पहलू यह था कि भारत एक फेयर प्लेस’ नहीं है। यहां भेदभाव होता है और समानता नहीं है। क्या यह भारत के समाज को बांटने वाली बात नहीं है? क्या राहुल गांधी भारत के संविधान को नहीं मानते हैं? भारत का संविधान नागरिकों के बीच समानता के सिद्धांत पर आधारित है। वह हर नागरिक को अवसर की समानता का अधिकार देता है। इसी सिद्धांत में अपवाद बना कर एफर्मेटिव एक्शन’ लिए गए हैं यानी आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई है। इसके बावजूद अगर किसी स्तर पर असमानता है तो उसके लिए दोषी  कौन है? क्या 60 साल तक राज करने वाली कांग्रेस पर इसकी जवाबदेही नहीं आती है? अगर कहीं असमानता है तो क्या राहुल गांधी के पूर्वजों की गलत नीतियों की वजह से नहीं है?

और क्या यह सचाई नहीं है कि पिछले 10 साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश में हर किस्म की असमानता मिटाने और सभी जातीय, धार्मिक व आर्थिक समूह के लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए काम किया है? परंतु राहुल गांधी को भारत का अपमान करना था। भारत के बारे में बुरी बातें कहनी थीं। वे समझते हैं कि इससे वे प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा का अपमान कर रहे हैं, लेकिन असल में वे भारत का अपमान करते हैं। पहले वे एक सांसद के नाते विदेश जाते थे और इस तरह की बातें करते थे परंतु इस बार तो वे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के नाते विदेश गए थे। वे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति हैं और देश के राजदूत के रूप में उनका आचरण होना चाहिए था। लेकिन अफसोस की बात है कि वे अपने छोटे छोटे राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ऊपर नहीं उठ सके।

उनकी दूसरी बात और भी खतरनाक थी। उन्होंने सिखों के मन में डर पैदा हो जाने की बात कही। यह बात कितनी खतरनाक है इसका अंदाजा इससे लगता है कि सिख फॉर जस्टिस’ नाम से संगठन बनाने वाले अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने उनकी बात का समर्थन किया। राहुल की इस बात से पहले सवाल तो यही उठता है कि क्या नैतिक रूप वे ऐसी स्थिति में हैं कि इस तरह के बयान दे सकें? उनकी दादी इंदिरा गांधी की सरकार ने ऑपरेशन ब्लूस्टार के रूप में सिखों को सबसे बड़ा घाव दिया था और उनके पिता राजीव गांधी की सरकार के समय दिल्ली में सिखों का नरसंहार हुआ था।

उनकी पार्टी के ही नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पिछले दिनों राहुल के बचाव में उतरे तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार के समय सिखों के सबसे पवित्र स्वर्ण मंदिर पर हमला’ हुआ था। यह भी सबको पता है कि सिख नरसंहार के समय उसको न्यायसंगत ठहराते हुए राजीव गांधी ने कहा था कि बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।

सिखों के प्रति इस तरह का भाव रखने वाले लोग विदेश जाकर उनके लिए घडिय़ाली आंसू बहा रहे हैं, इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है! लेकिन इस बयान के लिए राहुल की बुद्धि पर अफसोस करने की बजाय यह समझने की जरुरत है कि उन्होंने ऐसा विभाजनकारी बयान क्यों दिया? उनका बयान खालिस्तान की मांग करने वाले अलगाववादियों के तुष्टिकरण वाला है। यह बहुत खतरनाक बयान है। ध्यान रहे पंजाब में 2017 के चुनाव के समय आम आदमी पार्टी पर अलगाववादियों से मिलीभगत के आरोप लगे थे। बाद में 2022 में कट्टरपंथी ताकतों के समर्थन से आप ने कांग्रेस को हरा कर पंजाब में सरकार बना ली। तभी ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी आप से ज्यादा कट्टरपंथी राजनीति कर रहे हैं ताकि पंजाब में सत्ता हासिल की जा सके। इसके लिए वे देश की एकता, अखंडता को दांव पर लगाने के लिए भी तैयार हैं।

नेता प्रतिपक्ष के रूप में पहली विदेश यात्रा पर गए राहुल गांधी ने वॉशिंगटन में रेबर्न हाउस में अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। इसमें अमेरिका की विवादित कांग्रेस सदस्य इल्हान उमर भी शामिल थीं। अब ऐसा नहीं हो सकता है कि राहुल और उनकी टीम को, खास कर ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा को इल्हान उमर के बारे में जानकारी नहीं हो। वे भारत विरोधी बयानों और विचारों के लिए जानी जाती हैं। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिका के दौरे पर गए और अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित किया तो इल्हान उमर से उसका बहिष्कार किया था। वे पाकिस्तान सरकार के खर्चे पर पाकिस्तान के दौरे पर गई थीं और पाक अधिकृत कश्मीर का भी दौरा किया था। इल्हान ने पाक अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताया था। भारत ने इसका विरोध किया था और कड़ा प्रतिवाद दर्ज कराया था।

भारत व कनाडा के कूटनीतिक तनाव के समय भी उन्होंने भारत विरोधी रुख अख्तियार किया था। वे एनआरसी के विरोध में बोलती हैं। क्वाड के विरोध में बोलती हैं। दुनिया में शायद ही कोई और विदेशी राजनेता होगा, जिसका भारत के मामले में इतना नफरत भरा रवैया होगा। लेकिन राहुल गांधी उनसे भी मिले। ऐसा लग रहा है कि राहुल ने भारत विरोधी ताकतों से मेलजोल रखना अपनी आदत बना ली है। पहले भी जॉर्ज सोरोस के करीबियों से राहुल की मुलाकातों को लेकर विवाद हुए थे।

इस मामले में उनके व्यवहार में एक निरंतरता है, एक पैटर्न है। हर बार वे अपनी विदेश यात्राओं में भारत के लिए अपमानजनक बयान देते हैं और भारत विरोधियों से मिलते हैं। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है। मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता के नाते उनका अधिकार है कि वे राजनीति करें और सरकार बनाने का प्रयास करें लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वे भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करते करते भारत का विरोध करने लगें या इसकी एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करें।

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